
इंफोपोस्ट संवाददाता, नयी दिल्ली। Chhath pooja :
आस्था का पर्व छठ पर्व सोमवार की सुबह के अर्ध्य के साथ समाप्त हो गया।
व्रतियों ने सुबह उगते सूर्य को अर्ध्य देने के बाद व्रत खोला।
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बिहार उत्तर प्रदेश, दिल्ली एनसीआर सहित देश के कई हिस्सों में धूमधाम से छठ पर्व मनाया गया। वहीं अमेरिका, जर्मनी सहित कई अन्य देशों में भी छठ पर्व को लेकर भारी उत्साह देखा गया। सात समंदर पार अमेरिका के टेस्कसास राज्य के डलास और केलिफोर्निया सहित कई हिस्सों में धूमधाम से छठ पर्व मनाया गया। हालांके अमेरिका में कई राज्यों में बारिश की वजह से व्रतियों को थोड़ी परेशानी हुई। जर्मनी में भारतीयों ने निष्ठा के साथ महापर्व की तैयारी कर सूर्य को नमन किया। सूर्य भगवान की पूजा करने के लिए अस्थायी पोखरों का निर्माण किया। और छठी मैया की आराधना की।
सूर्यास्त के वक्त श्रवण नक्षत्र, सुबह ध्रुव योग में उपासना
Chhath pooja : व्रत रखने वाली महिलाओं और पुरुषों ने ग्रह-नक्षत्रों के शुभ संयोग के बीच रविवार को अस्त होते सूर्य को अर्घ्य दिया। रविवार को भगवान सूर्य का भी दिन माना गया है। ऐसे में इस दिन सूर्य उपासना की महत्ता और ज्यादा रही। इसके बाद सोमवार भोर में भी उगते सूर्य को अर्घ्य दिया। सोमवार सूर्योदय सुबह 6:29 बजे हुआ। इस समय ध्रुव योग और धनिष्ठा नक्षत्र था। ध्रुव योग को स्थिर योग कहा गया है। इस समय किया काम स्थिर रहता है। वहीं, धनिष्ठा मंगल का नक्षत्र है। इस नक्षत्र में पूजा-पाठ स्थिरता प्रदान करती है।
छठ पर्व का महत्व
मोतिहारी में आध्यात्मिक गुरु धर्मेंद्र कुमार मिश्रा ने छठ पर्व के महत्व को बताया। छठ पूजा में सूर्य देव और छठी मैया की पूजा विधि विधान से की जाती है। छठ पूजा का प्रारंभ कब से हुआ, सूर्य की आराधना कब से प्रारंभ हुई, इसके बारे में पौराणिक कथाओं में बताया गया है। सतयुग में भगवान श्रीराम, द्वापर में दानवीर कर्ण और पांच पांडवों की पत्नी द्रौपदी ने सूर्य की उपासना की थी। छठी मैया की पूजा से जुड़ी एक कथा राजा प्रियवंद की है, जिन्होंने सबसे पहले छठी मैया की पूजा की थी। आइए जानते हैं कि सूर्य उपासना और छठ पूजा का इतिहास और कथाएं क्या हैं।
राजा प्रियवंद ने पुत्र के प्राण रक्षा के लिए की थी छठ पूजा
Chhath pooja : एक पौराणिक कथा के अनुसार, राजा प्रियवंद नि:संतान थे, उनको इसकी पीड़ा थी। उन्होंने महर्षि कश्यप से इसके बारे में बात की। तब महर्षि कश्यप ने संतान प्राप्ति के लिए पुत्रेष्टि यज्ञ कराया। उस दौरान यज्ञ में आहुति के लिए बनाई गई खीर राजा प्रियवंद की पत्नी मालिनी को खाने के लिए दी गई। यज्ञ के खीर के सेवन से रानी मालिनी ने एक पुत्र को जन्म दिया, लेकिन वह मृत पैदा हुआ था। राजा प्रियवंद मृत पुत्र के शव को लेकर श्मशान पहुंचे और पुत्र वियोग में अपना प्राण त्यागने लगे।
उसी वक्त ब्रह्मा की मानस पुत्री देवसेना प्रकट हुईं। उन्होंने राजा प्रियवंद से कहा, मैं सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्पन्न हुई हूं, इसलिए मेरा नाम षष्ठी भी है। तुम मेरी पूजा करो और लोगों में इसका प्रचार-प्रसार करो। माता षष्ठी के कहे अनुसार, राजा प्रियवंद ने पुत्र की कामना से माता का व्रत विधि विधान से किया, उस दिन कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी थी। इसके फलस्वरुप राजा प्रियवद को पुत्र प्राप्त हुआ।
श्रीराम और सीता ने की थी सूर्य उपासना
पौराणिक कथा के अनुसार, लंका के राजा रावण का वध कर अयोध्या आने के बाद भगवान श्रीराम और माता सीता ने रामराज्य की स्थापना के लिए कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को उपवास रखा था और सूर्य देव की पूजा अर्चना की थी।
द्रौपदी ने पांडवों के लिए रखा था छठ व्रत
Chhath pooja : पौराणिक कथाओं में छठ व्रत के प्रारंभ को द्रौपदी से भी जोड़कर देखा जाता है। द्रौपदी ने पांच पांडवों के बेहतर स्वास्थ्य और सुखी जीवन लिए छठ व्रत रखा था और सूर्य की उपासना की थी, जिसके परिणामस्वरुप पांडवों को उनको खोया राजपाट वापस मिल गया था।
दानवीर कर्ण ने शुरू की सूर्य पूजा
महाभारत के अनुसार, दानवीर कर्ण सूर्य के पुत्र थे और प्रतिदिन सूर्य की उपासना करते थे। कथानुसार, सबसे पहले कर्ण ने ही सूर्य की उपासना शुरू की थी। वह प्रतिदिन स्नान के बाद नदी में जाकर सूर्य को अर्घ्य देते थे।