श्रीकांत सिंह
नई दिल्ली। आज हम एक ऐसे नेता की चर्चा कर रहे हैं, जिसके लिए जनहित हमेशा सर्वोपरि रहा है। हम बात कर रहे हैं पूर्व रक्षा मंत्री जसंवत सिंह की, जिनका रविवार सुबह निधन हो गया। वह 82 साल के थे और पिछले छह साल से कोमा में थे।
जसवंत सिंह के बारे में उस समय की एक बात याद आ रही है, जब वह अटल सरकार में वित्त मंत्री थे। उस समय बजट में रसोई गैस का दाम बढ़ा दिया गया था। उनकी पत्नी से पूछा गया कि सरकार का एक काम बताएं, जो उन्हें अच्छा न लगा हो। इस पर जवाब मिला, रसोई गैस का दाम बढ़ा कर ठीक नहीं किया गया। अगले दिन रसोई गैस के दाम में बढ़ोतरी को वापस ले लिया गया। ऐसे थे जसवंत सिंह।
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के संस्थापकों में एक जसवंत सिंह पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार के दौरान विभिन्न मंत्रालयों के कैबिनेट मंत्री रहे। उन्होंने 1996 से 2004 के दौरान रक्षा, विदेश और वित्त जैसे महत्वपूर्ण मंत्रालयों का जिम्मा संभाला।
वर्ष 2014 में भाजपा ने जसवंत सिंह को राजस्थान के बाड़मेर से लोकसभा चुनाव का टिकट नहीं दिया था। इसके बाद नाराज जसवंत सिंह ने पार्टी छोड़कर निर्दलीय चुनाव लड़ा, मगर हार गए। उसी वर्ष उन्हें सिर में गंभीर चोटें आईं, तब से वह कोमा में थे।
जसवंत सिंह ने पहले सेना में रहकर देश सेवा की और बाद में राजनीति का दामन थाम लिया था। वह 1980 से 2014 तक सांसद रहे और इस दौरान उन्होंने संसद के दोनों सदनों का प्रतिनिधित्व किया। उनके पुत्र मानवेंद्र सिंह भी राजनीति में हैं।
जसवंत सिंह को 1998 और 1999 में भारत का विदेशी मंत्री नियुक्त किया गया था। 2002 में पुनः उनकी नियुक्ति भारत के वित्त मंत्री के पद पर की गई। कंधार विमान अपहरण कांड के वक्त वे विदेश मंत्री थे। तीन आतंकियों को कंधार छोड़ने भी वही गए थे।
जसवंत सिंह जिन्ना पर लिखी अपनी किताब ‘जिन्ना: इंडिया-पार्टीशन, इंडिपेंडेंस’ को लेकर भारतीय जनता पार्टी से निष्कासित कर दिए गए थे। 2010 में उनकी वापसी हुई। 2014 में उन्हें भाजपा ने लोकसभा चुनाव का टिकट नहीं दिया।
उनकी बाड़मेर सीट से भाजपा ने कर्नल सोनाराम चौधरी को उतारा। इसके बाद जसवंत ने भाजपा छोड़ दी। निर्दलीय चुनाव लड़े, लेकिन हार गए। इसी साल उन्हें सिर में चोट लगी। इसके बाद से जसवंत कोमा में ही थे।
दार्जिलिंग संसदीय क्षेत्र से 15वीं लोकसभा में वे सांसद चुने गए। वे राजस्थान में बाड़मेर जिले के जसोल गांव के निवासी है और 1960 के दशक में भारतीय सेना में अधिकारी रहे। पंद्रह साल की उम्र में वे भारतीय सेना में शामिल हुए थे।
जसवंत जैसे नेता एक बड़े अंतराल पर ही पैदा होते हैं। वे इस बात के प्रतीक थे कि जनहित के समक्ष सत्ता को कभी भी जड़ता नहीं दिखानी चाहिए। आज कल सत्ता का जो चरित्र है, उसमें जसवंत सिंह जैसे नेता का पनप पानी मुश्किल ही नहीं नामुमकिन लग रहा है।